पलट सुदामा देखन लागे,
कित गई मोरी टपरिया रे,
जा कुन बनवा दई अटरिया रे,
कुन बनवा दई अटरिया रे।।
जहां तो थी मोरी,
कांस की टपरिया,
कंचन महल बनवा दये रे,
कुन बनवा दई अटरिया रे,
कुन बनवा दई अटरिया रे।।
जहां तो थे मोरे तुलसी के वृक्षा,
चंदन पेड़ लगवा दये रे,
कुन बनवा दई अटरिया रे,
कुन बनवा दई अटरिया रे।।
यहां तो थी मेरी बूढ़ी ब्राम्हणी,
जाए रंभा कौन ने बनवा दये रे,
कुन बनवा दई अटरिया रे,
कुन बनवा दई अटरिया रे।।
पलट सुदामा देखन लागे,
कित गई मोरी टपरिया रे,
जा कुन बनवा दई अटरिया रे,
कुन बनवा दई अटरिया रे।।
गायक – गोलू ओझा अशोकनगर।
प्रेषक – मोहन राजपूत।
9893960861