पांचो आँँगलियां में राख दीयो फरको,
खेल न्यारो ही देख्यो छ रघुवर को,
न्यारो ही देख्यो छ रघुवर को,
खेल न्यारो ही देख्यो छ रघुवर को।।
एक जीव चौरासी काया,
वहाँ से आया मीनक बणाया,
कोई भेद न पायो नटवर को,
खेल न्यारो ही देख्यो छ रघुवर को।।
खेल खिलौना की दुनिया बणादी,
राँख लियो वो खुद कन चाबी,
को न रयो रे भरोसो पल भर को,
खेल न्यारो ही देख्यो छ रघुवर को।।
समय सरू की लगाम बणायो,
बड़ा बड़ा पर दाव चलायो,
कोई घाट को राख्यो न कोई घर को,
खेल न्यारो ही देख्यो छ रघुवर को।।
गुण अवगुण यश अपयश सारा,
कर्म गति का खेल है न्यारा,
को न मालुनी खेल चतरंन को
खेल न्यारो ही देख्यो छ रघुवर को।।
पांचो आँँगलियां में राख दीयो फरको,
खेल न्यारो ही देख्यो छ रघुवर को,
न्यारो ही देख्यो छ रघुवर को,
खेल न्यारो ही देख्यो छ रघुवर को।।
गायक – रामकुमार मालुणी।
प्रेषक – महावीर दादौली,
9571693202
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