पंछीड़ा लाल लीला,
छ कमाल लीलाधर की,
मरजा जो पाछो नहीं आवे,
अजब रीत उण घर की।।
संत महात्मा घना होया जो,
खबर लेत अंबर की,
मरवा खातिर बेबी पकड़े,
सड़क बिना डंबर की।।
जो भी मरिया फिरया नहीं पाछा,
करगा ओट नजर की,
देवी देवता नहीं आया तो,
कांइ ताकत नर की।।
रावण पकड़ काल ने धरदियो,
खिड़की कारा गर की,
वोही काल उड़ाकर लेगो,
देही दसकंदर की।।
नरसिंह दास पकड़ पंछीड़ा,
शरण राधिका वर की,
चिंता फिकर छोड़ दे प्यारे,
आशा छोड़ जिगर की।।
पंछीड़ा लाल लीला,
छ कमाल लीलाधर की,
मरजा जो पाछो नहीं आवे,
अजब रीत उण घर की।।
प्रेषक – रमेश निरंजन
98291 20430
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