पाप पुण्यों में सभी जाने है,
बार बार समझाऊं क्या,
भजन करो तो मर्जी तुम्हारी,
मेरे मुख से केहू क्या।।
सूरज रा प्रकाश भया है,
दिवले री जोत जलाऊ क्या,
इंद्र घटा जब बर्सन लागी,
जल में प्यास बुझाऊं क्या।।
ब्राह्मण होकर मांस मानावे,
उसका सरण मनाऊ क्या,
जिस मंदिर में मूरत नहीं है,
उसमें शीश नहाऊ क्या।।
बोल नि जाने जन्म का गूंगा,
उसको वेद पढ़ाऊ क्या,
जिस रोगी का प्राण निकल्गा,
फेर पसे बेद बुलाऊं क्या।।
देवो में गुरुदेव बड़ा है,
और देवों को ध्याऊँ क्या,
जियानाथ गुरु कथकर बोले,
कलर खेत बहाऊं क्या।।
पाप पुण्यों में सभी जाने है,
बार बार समझाऊं क्या,
भजन करो तो मर्जी तुम्हारी,
मेरे मुख से केहू क्या।।
गायक – परमाराम प्रजापत।
प्रेषक – सवाई राम प्रजापत।
7726948320