परदेसी परदेसी चला गया,
पिंजरा तोड़ के,
पिंजरा तोड़ के,
फिर कैसे रिश्ते नाते,
कैसी ये माया,
तेरे ही अपनो ने,
तुझको जलाया,
परदेसी परदेसी चलां गया,
पिंजरा तोड़ के,
पिंजरा तोड़ के।।
तर्ज – परदेसी परदेसी जाना नहीं।
मैं ये नहीं कहता,
की भंडार मत भरना,
मगर इस आत्मा का,
ऐतबार मत करना,
परदेसी परदेसी चलां गया,
पिंजरा तोड़ के,
फिर कैसे रिश्ते नाते,
कैसी ये माया,
तेरे ही अपनो ने,
तुझको जलाया,
परदेसी परदेसी चलां गया,
पिंजरा तोड़ के।।
माल खजाने तेरे,
काम ना आएंगे,
तेरे कपडे भी,
उतारे जाएंगे,
श्राद्ध पक्ष में,
तुझको हार चढ़ाएंगे,
तेरे पीछे खीर जलेबी खाएंगे,
फिर कैसे रिश्ते नाते,
कैसी ये माया,
तेरे ही अपनो ने,
तुझको जलाया,
परदेसी परदेसी चलां गया,
पिंजरा तोड़ के।।
क्यों गफलत में जीते हो,
कुछ काम करो,
तज माया अभिमान,
राम का नाम जपो,
राम का नाम ही,
बेड़ा पार लगाएगा,
अंत समय में,
काम यही बस आएगा,
फिर कैसे रिश्ते नाते,
कैसी ये माया,
तेरे ही अपनो ने,
तुझको जलाया,
परदेसी परदेसी चलां गया,
पिंजरा तोड़ के।।
परदेसी परदेसी चला गया,
पिंजरा तोड़ के,
पिंजरा तोड़ के,
फिर कैसे रिश्ते नाते,
कैसी ये माया,
तेरे ही अपनो ने,
तुझको जलाया,
परदेसी परदेसी चलां गया,
पिंजरा तोड़ के,
पिंजरा तोड़ के।।
स्वर – श्री गोपाल जी बजाज ‘परीक्षित’।