पार्वती के तुम हो लाला,
में जप्ता हुँ तेरी माला।।
श्लोक – पारवती के लाल कोमल कर,
मोदक वसे तो मंगल रूप विसार,
सरस्वती शिमरू शारदा,
धरु गुणपत को ध्यान,
घट का ताला खोल दो,
मैं हूँ मुर्ख अंजान।
पार्वती के तुम हो लाला,
में जप्ता हुँ तेरी माला,
खोल मेरे हिर्दय का ताला,
ग्यान बतावा आयके,
मेरा गुण से पेट भरो रे,
गणनायक विघ्नं हरो रे,
सुख सम्पत दीजो आयके,
गणनायक विघ्नं हरो रे,
सुंडाला मेहर करो रे।।
मात गवरजा सियासती को,
में शिमरू कैलाश पति को,
बलवंता हनुमान जती को,
लायो सजीवन जायके,
रघुवर काज हरो रे,
गणनायक विघ्नं हरो रे,
सुख सम्पत दीजो आयके,
गणनायक विघ्नं हरो रे,
सुंडाला मेहर करो रे।।
रिद्धि शिद्धि सेज सकल घनकारा,
अड़सठ तीर्थ गंगा नित धारा,
पुष्कर तीर्थ राज से प्यारा,
नया डूबे मजधार में,
सतगुरु जी पार करो रे,
गणनायक विघ्नं हरो रे,
सुख सम्पत दीजो आयके,
गणनायक विघ्नं हरो रे,
सुंडाला मेहर करो रे।।
मात पिता गुरुदेव पिसाई,
जन्म दियो जन ग्यान बताये,
‘धनसुख’ लाल शरण तेरी आये,
गणनायक विघ्नं हरो रे,
सुख सम्पत दीजो आयके,
गणनायक विघ्नं हरो रे,
सुंडाला मेहर करो रे।।
पार्वती के तुम हो लाला,
में जप्ता हुँ तेरी माला,
खोल मेरे हिर्दय का ताला,
ग्यान बतावा आयके,
मेरा गुण से पेट भरो रे,
गणनायक विघ्नं हरो रे,
सुख सम्पत दीजो आयके,
गणनायक विघ्नं हरो रे,
सुंडाला मेहर करो रे।।
“श्रवण सिंह राजपुरोहित द्वारा प्रेषित”
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