पता नहीं किस रूप में आकर,
नारायण मिल जाएगा,
निर्मल मन के दर्पण में वह,
राम का दर्शन पाएगा,
राम नाम के साबुन से जो,
मन का मेल छुडाएगा,
निर्मल मन के दर्पण में वह,
राम का दर्शन पाएगा।।
झूठ कपट निंदा को त्यागो,
हर प्राणी से प्यार करो,
घर पर आये अतिथि कोई तो,
यथाशक्ति सत्कार करो,
पता नही किस रूप मे आकर,
नारायण मिल जाएगा,
निर्मल मन के दर्पण में वह,
राम का दर्शन पाएगा।।
नर शरीर अनमोल रे प्राणी
प्रभु कृपा से पाया है,
झूठे जग प्रपंच में पड़कर,
क्यों प्रभु को बिसराया है,
समय हाथ से निकल गया तो,
सिर धुन धुन पछतायेगा,
निर्मल मन के दर्पण में वह,
राम का दर्शन पाएगा।।
दौलत का अभिमान है झूठा,
ये तो आनी जानी है,
राजा रंक अनेक हुए,
कितनो की सुनी कहानी है,
राम नाम का महामंत्र ही,
साथ तुम्हारे जाएगा,
निर्मल मन के दर्पण में वह,
राम का दर्शन पाएगा।।
साधन तेरा कच्चा है,
जब तक प्रभु पर विश्वास नहीं,
मंजिल गर पाना है क्या जब,
दीपक में प्रकाश नहीं,
निश्चय है तो भव सागर से,
बेड़ा पार हो जाएगा,
निर्मल मन के दर्पण में वह,
राम का दर्शन पाएगा।।
पता नहीं किस रूप में आकर,
नारायण मिल जाएगा,
निर्मल मन के दर्पण में वह,
राम का दर्शन पाएगा,
राम नाम के साबुन से जो,
मन का मेल छुडाएगा,
निर्मल मन के दर्पण में वह,
राम का दर्शन पाएगा।।
स्वर – श्री प्रेमभूषण जी महाराज।
प्रेषक – मनमोहन साहू।
6268046938
Very nice