पी ले अमीरस धारा,
गगन में झड़ी लगी,
झड़ी लगी यहाँ झड़ी लगी,
पीले अमीरस धारा,
गगन में झड़ी लगी।।
बुंद का प्यासा घड़ा भर पाया,
सपने में वो स्वाद न आया,
कोई किसे कैसे समझाए,
एक बुंद की तरण लगी,
पीले अमीरस धारा,
गगन में झड़ी लगी।।
प्यास बिना क्या पीवे है पानी,
प्यास अकेली ये है वो पानी,
बिना अधिकार कोई नहीं जानी,
अमृत रस की झड़ी लगी,
पीले अमीरस धारा,
गगन में झड़ी लगी।।
अमीरस पीवे अमर पद पावे,
भवयोनी में कभी नहीं आवे,
जरा मरण का दुख नसावे,
घट की गगरिया भरण लगी,
पीले अमीरस धारा,
गगन में झड़ी लगी।।
बून्द अमीरस गुरु जी की वाणी,
जीवन रास्ता है यह पानी,
कबीर संगत में हो हमारी,
डाली प्रेम की हरी लगी,
पीले अमीरस धारा,
गगन में झड़ी लगी।।
पी ले अमीरस धारा,
गगन में झड़ी लगी,
झड़ी लगी यहाँ झड़ी लगी,
पीले अमीरस धारा,
गगन में झड़ी लगी।।
गायक – बद्रीलाल जी गाडरी दौलतपुरा।
महाकाल लाइव प्रस्तुति।
7425927673