प्रभु कर सब दुख दूर हमारे,
शरण पड़े हम दास तुम्हारे।।
सकल जगत तुमने उपजाया,
तुम प्रति पालन हारे,
प्रभु कर सब दुख दूर हमारें,
शरण पड़े हम दास तुम्हारे।।
सकल व्यापक अंतरयामी,
ध्यावत सुर नर मुनिगण सारे,
प्रभु कर सब दुख दूर हमारें,
शरण पड़े हम दास तुम्हारे।।
नाम तुम्हारो सब सुखदायक,
सकल दोष भयो पाप निवारे,
प्रभु कर सब दुख दूर हमारें,
शरण पड़े हम दास तुम्हारे।।
सतचित आनन्द रूप तुम्हारो,
‘ब्रह्मानन्द’ सदा मन धारे,
प्रभु कर सब दुख दूर हमारें,
शरण पड़े हम दास तुम्हारे।।
प्रभु कर सब दुख दूर हमारे,
शरण पड़े हम दास तुम्हारे।।
रचना – श्री ब्रह्मानन्द जी।