प्रभू मेरे आँगन भी,
आना कभी,
हो जो निकलना मेरी,
गली से कभी।।
तर्ज – कभी तेरा दामन न।
पूजा करूँगा तेरी,
आरती उतारूँगा,
सूरत को तेरी फिर,
मै हरदम निहारूँगा,
आँसुओ से दाता,
तेरे चरण पखारूँगा,
बस जाओ दाता,
मेरे मन मे यदि,
प्रभू मेरे आंगन भी,
आना कभी,
हो जो निकलना मेरी,
गली से कभी।।
मँदिर को तेरे नित,
सजाता रहूँगा,
तेरी रज़ा मे जीवन,
विताता रहूँगा,
तेरी कृपा से झाड़ू,
लगाता रहूँगा,
जाना न फिर मुझे,
छोड़के कभी,
प्रभू मेरे आंगन भी,
आना कभी,
हो जो निकलना मेरी,
गली से कभी।।
चरण प्रभू रख दो,
घर तुम हमारे,
मिट जाऐगे दाता,
सब अँधियारे,
कर दो क़रम प्रभू,
हे नँगली वाले,
तन ये छूटे पर,
दर छूटे न कभी,
प्रभू मेरे आंगन भी,
आना कभी,
हो जो निकलना मेरी,
गली से कभी।।
प्रभू मेरे आँगन भी,
आना कभी,
हो जो निकलना मेरी,
गली से कभी।।
– भजन लेखक एवं प्रेषक –
शिवनारायण वर्मा,
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