प्रकट भई भानु लली सखी आज,
बिरज में है रही जय जयकार।
दोहा – भादो अष्टमी शुभ दिन आयो,
सभी रसिकन को मन हर्षायो,
प्रगट भई मोहन मन हरनी,
ब्रज मंडल में आनंद छायो।
प्रकट भई भानु लली सखी आज,
बिरज में है रही जय जयकार,
है रही जय जयकार,
बिरज में छाई खुशी अपार,
प्रगट भई भानु लली सखी आज,
बिरज में है रही जय जयकार।।
बरसाने चलो भानु द्वारे,
देन बधाई ब्रजवासी पधारे,
लागे रसिक समाज,
बिरज में है रही जय जयकार,
है रही जय जयकार,
बिरज में छाई खुशी अपार,
प्रगट भई भानु लली सखी आज,
बिरज में है रही जय जयकार।।
सब नाचे औरो को नचावे,
देख लली मुख बलि बलि जावे,
बाजे सबरे साज़,
बिरज में है रही जय जयकार,
है रही जय जयकार,
बिरज में छाई खुशी अपार,
प्रगट भई भानु लली सखी आज,
बिरज में है रही जय जयकार।।
बरसाने का मंगल नज़ारा,
मंगल हरपल मंगल सहारा,
पूरण भए सब काज,
बिरज में है रही जय जयकार,
है रही जय जयकार,
बिरज में छाई खुशी अपार,
प्रगट भई भानु लली सखी आज,
बिरज में है रही जय जयकार।।
‘गोपाली’ बन पागल बावरी,
बसन चली बरसाना गाँव री,
जहाँ रसिकन सिरताज,
बिरज में है रही जय जयकार,
है रही जय जयकार,
बिरज में छाई खुशी अपार,
प्रगट भई भानु लली सखी आज,
बिरज में है रही जय जयकार।।
प्रगट भई भानु लली सखी आज,
बिरज में है रही जय जयकार,
है रही जय जयकार,
बिरज में छाई खुशी अपार,
प्रगट भई भानु लली सखी आज,
बिरज में है रही जय जयकार।।
स्वर – श्री श्यामा दासी।