रचा है श्रष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये श्रष्टि चला रहे है,
जो पेड़ हमने लगाया पहले,
उसी का फल हम अब पा रहे है,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये श्रष्टि चला रहे है।।
तर्ज – फसी भवर में थी मेरी नैया।
इसी धरा से शरीर पाए,
इसी धरा में फिर सब समाए,
है सत्य नियम यही धरा का,
है सत्य नियम यही धरा का,
एक आ रहे है एक जा रहे है,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये श्रष्टि चला रहे है।।
जिन्होने भेजा जगत में जाना,
तय कर दिया लौट के फिर से आना,
जो भेजने वाले है यहाँ पे,
जो भेजने वाले है यहाँ पे,
वही फिर वापस बुला रहे है,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये श्रष्टि चला रहे है।।
बैठे है जो धान की बालियो में,
समाए मेहंदी की लालियो में,
हर डाल हर पत्ते में समाकर,
हर डाल हर पत्ते में समाकर,
गुल रंग बिरंगे खिला रहे है,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये श्रष्टि चला रहे है।।
रचा है श्रष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये श्रष्टि चला रहे है,
जो पेड़ हमने लगाया पहले,
उसी का फल हम अब पा रहे है,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये श्रष्टि चला रहे है।।
स्वर – धीरज कांत जी।
अतिसुन्दर
Very Good
Very good ❤️
अति सुन्दर आनंद आगया 👌🙏
ATI Anand Umagi Anuraga
Charan Vandana Karnan Laga.