राधे राधे रटूँगा आठों याम,
बिरज की गलियों में,
चाहे ढल जाए जीवन की शाम,
बिरज की गलियों में।।
वृन्दावन को छोड़ कन्हैया,
दूर कभी ना जावे,
जो गावे श्री राधे राधे,
वाके संग हो जावे,
मुरली कान्हा की,
बाजे आठों याम,
बिरज की गलियों में,
राधें राधें रटूँगा आठों याम,
बिरज की गलियों में।।
जिसकी मर्जी के बिन जग में,
पत्ता ना हिल पावे,
धरती का चप्पा चप्पा,
जिसकी रचना कहलावे,
उसे कहते हैं,
राधे का गुलाम,
बिरज की गलियों में,
राधें राधें रटूँगा आठों याम,
बिरज की गलियों में।।
जिसने ब्रज को देखा,
उसने बातें हैं ये मानी,
यमुना यम को दूर करे,
भव तारे राधे रानी,
कण कण में है,
चारो धाम,
बिरज की गलियों में,
राधें राधें रटूँगा आठों याम,
बिरज की गलियों में।।
‘सूरज’ ब्रज के कण कण में,
बस राधे राधे गूंजे,
भूल के सारी दुनिया जो,
राधे चरणों को पूजे,
उन्हें मिल जाता,
है घनश्याम,
बिरज की गलियों में,
राधें राधें रटूँगा आठों याम,
बिरज की गलियों में।।
राधे राधे रटूँगा आठों याम,
बिरज की गलियों में,
चाहे ढल जाए जीवन की शाम,
बिरज की गलियों में।।
स्वर / लेखक – रवि शर्मा ‘सूरज’