राजा दशरथ यूँ रो रो के कहने लगे,
हाय वनवास मेरा दुलारा गया।
दोहा – राम को जब तिलक की तैयारी हुई,
फिर तो खुशियाँ अयोध्या में भारी हुई,
चंद घड़ियों में बदली ख़ुशी की घड़ी,
एक दासी ने कर दी मुसीबत खड़ी,
रानी कैकई को मंथरा ने भड़का दिया,
यह बचन मांगों राजा से समझा दिया,
राज गद्दी हो मेरे भरत के लिए,
राम बनबास चौदह बरस के लिए।
राजा दशरथ यूँ रो रो के कहने लगे,
हाय वनवास मेरा दुलारा गया,
लुट गए मेरे अरमान मेरी ख़ुशी,
टूट कर मेरी आँखों का तारा गया।।
तर्ज – आज कल याद कुछ और।
क्या मिलेगा तुम्हें ऐसी जिद ठान कर,
इस तरह से ना खेलो मेरी जान पर,
कैसे जीना हो मुश्किल पड़ी प्राण पर,
जब कि वनवास प्राणों का प्यारा गया,
राजा दशरथ यूं रो रो के कहने लगे,
हाय वनवास मेरा दुलारा गया।।
भाई लक्ष्मण व सीता भी संग हो लिए,
सब ने माता पिता के चरण छू लिए,
आज्ञा दो बचन अपना पालन करें,
राम ह्रदय से ऐसा पुकारा गया,
राजा दशरथ यूं रो रो के कहने लगे,
हाय वनवास मेरा दुलारा गया।।
राम लक्ष्मण सिया बन को जाने लगे,
रीति रघुकुल की रघुवर निभाने लगे,
इस तरह से किया ‘पदम्’ पूरा बचन,
होनी बलवान जिसको ना टारा गया,
राजा दशरथ यूं रो रो के कहने लगे,
हाय वनवास मेरा दुलारा गया।।
राजा दशरथ यूं रो रो के कहने लगे,
हाय वनवास मेरा दुलारा गया,
लुट गए मेरे अरमान मेरी ख़ुशी,
टूट कर मेरी आँखों का तारा गया।।
लेखक – डालचन्द कुशवाह”पदम्”
भोपाल। 9827624524