राजा जी देवरो देवसी ने दीजे रे,
दोहा- रामा सामी आवजो,
कलयुग बहे करूर,
अर्ज करूं अजमाल रा,
हेलो साम्भल जो जरूर।
रामा मोरी राखियो,
अबके डोरी हाथ,
और नहीं म्हारे आसरो,
बाबा आप बिना रघुनाथ।
उणत मेटण आविया,
धणी बंधाई धीर,
भाणु जीवायो पलक में,
थे रंग हो रामापीर।
दिन रे दशम रा पीर पधारया,
सदा रे सुरँगा नूरा रे ए,
अपणा होवे जयाने आदर दीजे,
करोड़ गुना बक्शीजे रे,
राजा जी देवरो देवसी ने दीजे रे,
सेवा रे माळी ने बगशीजे रे,
राजाजी देवरों देवसी ने दीजे रे ए।।
बाग रे बगीचा सकल बेचिया,
मीन मुरजाद मेटी जे,
देव कला में एक डाणु रे जागियो,
जिण पर शिला रे धरीजे,
देवरों देवसी ने दीजे रे ए।।
लेवण ने आगा देवण ने पाछा,
मीन मरजाद मेटीजे,
आयोडे साद री सार नीं जाणे,
कायमो रे किसविध लीजे,
देवरों देवसी ने दीजे रे ए।।
देवसी जी भगत भव पेले रो,
प्रीत पेले री पालीजे,
चार जुगा में भेळा रमिया हमें,
कांई देर करीजे,
देवरों देवसी ने दीजे रे ए।।
गूगळ धूंप धणिया ने खेवाँ,
भाने रो भीड़द बधायजे,
मन शुध्द माळी देवसी जी बोले देवा,
सिर पर हाथ धरीजे,
देवरों देवसी ने दीजे रे ए।।
आंधा लूला करणी रा हीना,
मत कर जोर जबराई,
छोड़ म्हारो हाथ देवरे जाणों,
धूप भेळा टल जाई।।
रविदास जात रा रेगर,
रंगता चाम सदाई,
एक मन होय धणिया ने सिंवरिया,
कुंड में गंगा आई।।
धना भगत करणी रा साँचा,
कण बिना खेती भा ई,
बीज बाँट सन्तों ने दीना,
निपजी साख सवाही।।
इंदर राजा किणी नहीं सारे सारे,
किणी रे कहे बरसे नाही,
अलिया बरसे गलियां बरसे,
बरसे मेला रे माही।।
काशी में एक संत कबीरदास,
भेजो बणता सदाई,
एक मन हुई धणिया ने सिमरिया,
बालद आण ढलाई।।
सजन हाथ मे छुरी संभाई,
हँसिया बकरा भाई,
सिर का बदला लेणा ज्यूँ देणा,
इधकी रीत क्यूँ चलाही।।
धूप नहीं खेवूं देवरे नहीं आऊँ,
सेवा थोरी आँधिये ने भोलाई,
दोय कर जोड़ माली देवसी जी बोले,
आंधे री आँखिया खोलाही।।
आंधा लूला करणी रा हीना,
मत कर जोर जबराई,
छोड़ म्हारो हाथ देवरे जाणों,
धूप भेळा टल जाई।।
गायक – तुलसाराम जी परिहार मोखेरी।
प्रेषक – रामेश्वर लाल पँवार।
आकाशवाणी सिंगर।
9785126052