राम न भज्या सु रामजी रिझेला,
आ दुनिया रिझेली मीठी बता सूं,
भरम गांठ को जवेलो,
थान घर घर घर डोळ्या सूं।।
सुनो रे सज्जनो ई कलीयुग माही,
बाढ़ ही खेत न खावे हँ,
पराया हाथा सु कोई चीज मंगवावे,
तो व भी पूरी नही आवे हँ,
ओ मन को वश्वास जावे,
बिन पाछी तोल्या सूं।।
अरे भाई परहित कोई धर्म नही हँ,
पर पीड़ा सम पाप नही,
राम नाम के जाप बराबर,
दूजा कोई जाप नही,
ओ नर तेरी भक्ति होवेगी,
राम नाम मुख म बोल्या सूं।।
अरे ताऊ चोरी, चुगली,और जामनी,
नारी पराई न त्यागो जी,
साधू सन्त सतगुरु की सेवा करज्यो,
ओ श्री राम का भजना म लागो जी,
ओ नर तू बेकुठा म जावेलो,
साची साची बोल्यसू।।
अरे चाचा ई मन कपटी को नही भरोसो,
यो तो बदल जावे एक पल माही,
ऐ मात,पिता,सतगुरु की सेवा,
भाग बिन मिल पावे नही,
ओ आनन्द हो जावेला थारा जीवन में,
ओ थारा मन की घुंडी खोलयसू।।
राम न भज्या सु रामजी रिझेला,
आ दुनिया रिझेली मीठी बता सूं,
भरम गांठ को जवेलो,
थान घर घर घर डोळ्या सूं।।
प्रेषक – वैध कैलाश सोनी सिंहासन
सीकर राजस्थान
9928801614
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