आया फ़ागुन रंग रंगीला,
अवसर है छैल छबीला,
रंग जायेंगे बाबोसा के रंग में,
होली खेले आओ री,
आज बाईसा के संग में,
आई आई आई आई,
होली आई रे,
बाबोसा के भक्तो की,
टोली आई रे।।
उड़ रहा रे गुलाल,
देखो आज गगन मे,
फ़ागुन की मस्ती छाई,
रे छाई है त्रिभुवन में,
भक्त सारे आज उमंग में,
होली खेले आओ री,
आज बाईसा के संग में,
आई आई आई आई,
होली आई रे,
बाबोसा के भक्तो की,
टोली आई रे।।
बाबोसा मंदिर में,
आज सारे भगत खड़े है,
रंग डालेंगे बाबोसा को,
जिद्द पे पर अड़े है,
भर पिचकारी केशर रंग में,
होली खेले आओ री,
आज बाईसा के संग में,
आई आई आई आई,
होली आई रे,
बाबोसा के भक्तो की,
टोली आई रे।।
बाबोसा के गोरे,
गाल पे रंग लगावां,
बाईसा जो रंग लगावे,
म्हे रंग जावां,
‘दिलबर’ भक्ति के हम रंग में,
होली खेले आओ री,
आज बाईसा के संग में,
आई आई आई आई,
होली आई रे,
बाबोसा के भक्तो की,
टोली आई रे।।
आया फ़ागुन रंग रंगीला,
अवसर है छैल छबीला,
रंग जायेंगे बाबोसा के रंग में,
होली खेले आओ री,
आज बाईसा के संग में,
आई आई आई आई,
होली आई रे,
बाबोसा के भक्तो की,
टोली आई रे।।
गायिका – कविता राजवंश।
लेखक – दिलीप सिंह सिसोदिया ‘दिलबर’।
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