सब दिन होत ना एक समान,
दोहा – समय समय की बात है,
समय समय का खेल,
कभी समय बिछड़ावत है,
कभी करावे मेल।
सब दिन होत ना एक समान,
पांचों पांडव वन वन भटके,
संग द्रौपदी नार,
साधौ समय बड़ा बलवान,
सब दिन होत न एक समान।bd।
राज महल में रहने वाले,
रेशम पर जो चलने वाले,
अपने हाथों कुटी बनाते,
कर्मों की गति टाल न पाते,
क्या क्या लेख लिखे भगवान,
क्या क्या लेख लिखे भगवान,
सब दिन होत न एक समान।bd।
क्या सोचो क्या हो जाता है,
राज ताज सब खो जाता है,
कांटो पर जो चल पाते है,
गिरकर वही संभल पाते है,
ये है जीवन की पहचान,
ये है जीवन की पहचान,
सब दिन होत न एक समान।bd।
बल न बली का चलने देता,
छल न छली का चलने देता,
कोई इसकी चाल न जाने,
हार गए सब बड़े सयाने,
पार न पाते वेद पुराण,
पार न पाते वेद पुराण,
सब दिन होत न एक समान।bd।
इनकी एक भूल से इनको,
पड़ा काटना गिन गिन दिन को,
ऐसे ही बारह बरस बिताए,
पर्वत जैसे दुःख उठाए,
रखा धर्म ध्वजा का मान,
रखा धर्म ध्वजा का मान,
साधौ समय बड़ा बलवान।bd।
सिर पर लटकी है तलवार,
पैरों तले बिछी अंगार,
किंतु धैर्य का साथ न छोड़ा,
दुखों से मुख तनिक न मोड़ा,
मन में बसा रखा भगवान,
मन में बसा रखा भगवान,
सब दिन होत न एक समान।bd।
सब दिन होत न एक समान,
पांचों पांडव वन वन भटके,
संग द्रौपदी नार,
साधौ समय बड़ा बलवान,
सब दिन होत न एक समान।bd।
गायक – राज कमल।
प्रेषक – डॉ सजन सोलंकी।
9111337188