सब रंग में फकीरी,
रंग बड़ो मस्तानी।
दोहा – तन की परवाह नहीं,
धन की परवाह नहीं,
झांके छाके गयो बैराग,
वे जंगल में निकल गया तो,
मिट गया सभी ही राग।
सब रंग में फकीरी,
रंग बड़ो मस्तानी,
जाके लाग्यो शब्द को तीर,
छोड़ी रजधानी।।
राजपाट के पल में ठोकर मारी,
ऐसा था भरतरी भूप प्रजा बलधारी,
जब ज्ञान हुआ तो छोडी पिंगला रानी,
जाके लाग्यो शब्द को तीर,
छोड़ी रजधानी।।
गोपीचंद ने मेणावत समझावे,
होजा रे जोगी कभी काल नहीं खावे,
जब समझ गया तो मिट गई खेचांतानी,
जाके लाग्यो शब्द को तीर,
छोड़ी रजधानी।।
तुलसीदास ने तिरिया वचन सुणावा,
कर तुलसी राम से हेत या झुटी माया,
आखिर तो तुलसी बोली राम की बाणी,
जाके लाग्यो शब्द को तीर,
छोड़ी रजधानी।।
पलक बुखारा का बादशाह था भारी,
काशी का बोल से माया छोड़ ग्यो सारी,
कहे चेतन भारती नहीं किसी से ठानी,
जाके लाग्यो शब्द को तीर,
छोड़ी रजधानी।।
सब रंग मे फकीरी,
रंग बड़ो मस्तानी,
जाके लाग्यो शब्द को तीर,
छोड़ी रजधानी।।
गायक – आत्माराम भारती जी।
प्रेषक – मदन मेवाड़ी।
8824030646