सज धज के बैठे बाबा,
जादू चला रहे हो,
दिल को चुरा रहे हो,
सज धज के बैंठे बाबा।।
सर पे मुकुट तुम्हारे,
श्रष्टि के राजा जैसा,
कलयुग में दीनों का जो,
है न्याय करने बैठा,
तुम फैसले सभी को,
सच्चे सुना रहे हो,
सज धज के बैंठे बाबा,
जादू चला रहे हो,
दिल को चुरा रहे हो,
सज धज के बैंठे बाबा।।
करुणा भरी ये आँखे,
करुणा लुटा रही है,
लेकर जो आंसू आए,
धीरज बंधा रही है,
कर आँख के इशारे,
बिगड़ी बना रहे हो,
सज धज के बैंठे बाबा,
जादू चला रहे हो,
दिल को चुरा रहे हो,
सज धज के बैंठे बाबा।।
ये प्यारा प्यारा बागा,
तन पे जो सज रहा है,
कितने गरीबो की वो,
प्रभु लाज ढक रहा है,
तन पे सजे ये गहने,
यूँ ही लुटा रहे हो,
सज धज के बैंठे बाबा,
जादू चला रहे हो,
दिल को चुरा रहे हो,
सज धज के बैंठे बाबा।।
वैभव तुम्हारा सबकी,
शंका मिटा रहा है,
तेरे प्रेमियों का जलवा,
जग को दिखा रहा है,
‘रोमी’ का घर भी अब तक,
तुम्ही चला रहे हो,
सज धज के बैंठे बाबा,
जादू चला रहे हो,
दिल को चुरा रहे हो,
सज धज के बैंठे बाबा।।
सज धज के बैठे बाबा,
जादू चला रहे हो,
दिल को चुरा रहे हो,
सज धज के बैंठे बाबा।।
स्वर / रचना – रोमी जी।
प्रेषक – निलेश खंडेलवाल
9765438728