सलकनपुर की मैया,
तुम सो कोई नईया।।
विजयासन को नाम बड़ो है,
ऊंचे पर्वत भुवन बनो है,
पीपल की ठंडी छैया,
तुम सो कोई नईया।।
गणपति को द्वारे बेठारो,
शिव शंकर करे ध्यान तुम्हारो,
गौरा लेत बलैया,
तुम सो कोई नईया।।
हनुमत लाल ध्वजा फहराये,
भेरों भैरवी नांचे गाये,
खेलत छील बिलैया,
तुम सो कोई नईया।।
मैया सबकी झोली भरती,
मन की आशा पूरी करती,
“पदम्” पड़े तोरे पैंया,
तुम सो कोई नईया।।
सलकनपुर की मैया,
तुम सो कोई नईया।।
लेखक / प्रेषक – डालचन्द कुशवाह”पदम्”
भोपाल। 9827624524