समचाणे की माटी पे,
हटके फुल खिला जा,
मेरे गुरु मुरारी आजा,
मेरे गुरु मुरारी आजा।।
हो समचाणे मे जा क ने,
मैं किसने बात सुणाऊँ,
आँँखयां के महा नीर भरा स,
कैसे मन समझाऊँ,
मेर याद हो मेरे सतगुरू,
मेर याद घणे आवं,
आ क न समझा जया,
मेरे गुरु मुरारी आजा,
मेरे गुरु मुरारी आजा।।
मेंहदीपुर में रूका पटः था,
गुरू मुरारी आगे,
छोटे बड़े सब भाई बँधु,
सब्र का मुक्का लागे,
सब रोवं सं हो मेरे सतगुरू,
सब रोवं सं नर और नारी,
आ क समझा जया,
मेरे गुरु मुरारी आजा,
मेरे गुरु मुरारी आजा।।
भगवान बराबर समझु था,
फेर क्यों तुम मुझसे रुठे हो,
गुरू शिष्य का नाता ऐसा,
तोड़े से ना टुटे,
तुम देव हो मेरे सतगुरू,
तुम देव रूची धारी,
आ क ने समझा जया,
मेरे गुरु मुरारी आजा,
मेरे गुरु मुरारी आजा।।
हो जब जब तेरा ध्यान धरूं,
मेर याद घणा तुं आवः,
सुरजमल भक्त भी रोवण लागया,
गुरु माता समझावः,
रोहित शर्मा हो मेरे सतगुरू,
रोहित शर्मा तेरा पुजारी,
भक्ति में चकरा जया,
मेरे गुरु मुरारी आजा,
मेरे गुरु मुरारी आजा।।
समचाणे की माटी पे,
हटके फुल खिला जा,
मेरे गुरु मुरारी आजा,
मेरे गुरु मुरारी आजा।।
प्रेषक –
राकेश कुमार खरक जाटान
9992976579