सतगुरु देवा जी,
सुण ल्यो म्हारी विनती,
मैं दु:खी बड़ो बेहाल,
पिलाओ ज्ञान जड़ी।।
कर्म उपासना ओ,
किया मैं बहु भारी,
या से पायो नहीं विश्राम,
पिलाओ ज्ञान जड़ी।।
गंगा यमुना ओ,
तीरथ नहा लियो,
या से मिट्यो ना,
मन को सन्ताप,
पिलाओ ज्ञान जड़ी।।
माणक मोती ओ,
गुरु माँगू न हीं,
म्हाने राखो चरणा रो दास,
पिलाओ ज्ञान जड़ी।।
अगम अपारी ओ,
महिमा आपकी,
मैं आयों शरणा के माही,
पिलाओ ज्ञान जड़ी।।
वेद महावाक्य ओ,
खोल समझाई दो,
यही ज्ञानानन्द की पुकार,
पिलाओ ज्ञान जड़ी।।
सतगुरु देवा जी,
सुण ल्यो म्हारी विनती,
मैं दु:खी बड़ो बेहाल,
पिलाओ ज्ञान जड़ी।।
स्वर – श्री ज्ञानानंद जी महाराज।
प्रेषक – किशन गुर्जर।
6377944852