साथी हारे का तू मुझको भी,
जिताने आजा,
तू मेरी लाज को लूटने से,
बचाने आजा,
तू मेरी लाज को लूटने से,
बचाने आजा।।
तर्ज – प्यार झूठा सही।
रिश्तों के खेल में,
रिश्तों से ही हारे है,
अपनों के बिच में,
रहकर भी बेसहारे है,
कैसे जियूँगा यूँ घुट घुट के,
तमाशा बन के,
कैसे पियूँगा मैं अश्को को,
कन्हैया हस के,
मैं हूँ तेरा ये ज़माने को,
बताने आजा,
तू मेरी लाज को लूटने से,
बचाने आजा।।
मेरी लाचारी पे दुनिया भी,
सताती है मुझे,
ऐसे में बेबसी भी मेरी,
रुलाती है मुझे,
इससे पहले की ज़माने में,
हंसी हो मेरी,
तेरे ऊपर भी उठे उंगली,
हो बदनामी तेरी,
अपनी मैया जी के,
वचनो को निभाने आजा,
तू मेरी लाज को लूटने से,
बचाने आजा।।
हारे का साथ देते हो तुम,
सुना है हमने,
हार के जिंदगी से तुमको,
चुना है हमने,
आखरी आस बस इस दिल में,
तेरी बाकी है,
तेरी रहमत की इक नजर ही,
प्रभु काफी है,
‘मोहित’ की जिंदगी हाथो से,
सजाने आजा,
तू मेरी लाज को लूटने से,
बचाने आजा।।
साथी हारे का तू मुझको भी,
जिताने आजा,
तू मेरी लाज को लूटने से,
बचाने आजा,
तू मेरी लाज को लूटने से,
बचाने आजा।।
स्वर – अमित कालरा मीतू।