स्वामी सूरजसूत कहलायो,
माँ छाया गोद खेलायो,
ज्यारो जग में तेज सवायों,
शनिचर तपधारी,
हो शनिश्चर तपधारी।।
थे हो राजा का भी राजा,
दानव देवा का सिरताज़ा,
थाके बाजे नौपत बाजा,
महिमा है भारी,
हो शनीचर तपधारी।।
थाको रंग सुरंगी कालो,
ज्यापे कुदृष्टि थे नालो,
ज्याके पड़ियो पोष को पालो,
भैसा असवारी,
हो शनिस्चर तपधारी।।
भोग तेल कूलत रो लागे,
ज्याका दुख दालीदर भागे,
ज्याके आवे सपने सागे,
भाण का अवतारी,
हो शनिश्चर तपधारी।।
जो थरफ ने पूजे थावर,
ज्याका बढ़े पुण्य का पावर,
वाके ख़ुशी रहे सब टाबर,
सारा घरबारी,
हो शनिस्चर तपधारी।।
ज्याने लागा साढ़ा साती,
ज्याके थी बजर की छाती,
ज्याके द्वार घूमता हाथी,
कर दिया भिखारी,
हो शनिश्चर तपधारी।।
नृप विक्रम की गादी छूटी,
ज्याके पड़ी जाल या झूठी,
वाके हार निगल गी ख़ुटी,
लीला है न्यारी,
हो शनिस्चर तपधारी।।
विक्रम ‘भैरव’ शरणे आया,
वाकी सोरी राखो काया,
मा पर राखो छतर छाया,
ओ छतर धारीहो,
शनिस्चर तपधारी।।
स्वामी सूरजसूत कहलायो,
माँ छाया गोद खेलायो,
ज्यारो जग में तेज सवायों,
शनिचर तपधारी,
हो शनिश्चर तपधारी।।
गायक / प्रेषक – मनीष गर्ग नेवरिया।
(चित्तौड़गढ़) 9928398452