शंकर रम रयो रे पहाड़ा में,
गौरा पार्वती के संग,
पार्वती के संग,
गौरा महारानी के संग,
भोलो बाबो रम रयो रे पहाड़ा में,
गौरा पार्वती के संग।।
सेर खा गयो खारी तमाखु,
सेर पी गयो भंग,
आक धतूरा भोग लगत है,
रहे नशे में दंग,
भोलो बाबो रम रयो रे पहाड़ा में,
गौरा पार्वती के संग।।
हाथ में थारे त्रिशूल भाला,
भस्मी रमावे अंग,
माथे थारे चन्द्र बिराजे,
जटा जुट में गंग,
भोलो बाबो रम रयो रे पहाड़ा में,
गौरा पार्वती के संग।।
ढोलक बाजे मजीरा बाजे,
और बाजे मृदंग,
भोलेनाथ का डमरू बाजे,
महाराणी के संग,
भोलो बाबो रम रयो रे पहाड़ा में,
गौरा पार्वती के संग।।
कोरा कोरा कलश मंगाया,
जा में घोल्या रंग,
‘सूरदास’ की काली कमलिया,
चढ़े न दूजो रंग,
भोलो बाबो रम रयो रे पहाड़ा में,
गौरा पार्वती के संग।।
शंकर रम रयो रे पहाड़ा में,
गौरा पार्वती के संग,
पार्वती के संग,
गौरा महारानी के संग,
भोलो बाबो रम रयो रे पहाड़ा में,
गौरा पार्वती के संग।।
गायक – धर्मेश कौशिक।
+91 98137 57201
लेखक – सूरदास।