शरद की पूनम पर,
जो भी कड़छा जाते हैं,
गुरूवर टेकचंद जी,
उनको गले से लगाते हैं।।
तर्ज – आदमी मुसाफिर है।
समाधी उत्सव होता है भारी,
जानती है जिसको दुनिया सारी,
गुरू यहाँ आशीष बरसाते हैं,
शरद की पुनम पर,
जो भी कड़छा जाते हैं,
गुरूवर टेकचंद जी,
उनको गले से लगाते हैं।।
फुलो से मंदिर सजता है न्यारा,
स्वर्ग से सुंदर लगता नजारा,
जब थोडा सा गुरूवर मुस्काते है,
शरद की पुनम पर,
जो भी कड़छा जाते हैं,
गुरूवर टेकचंद जी,
उनको गले से लगाते हैं।।
पूनम की आरती का नजारा,
देखने तरसता जिसे जग सारा,
गुरूवर जब अमृत बसराते है,
शरद की पुनम पर,
जो भी कड़छा जाते हैं,
गुरूवर टेकचंद जी,
उनको गले से लगाते हैं।।
भाव से कड़छा धाम जो आता,
पल भर में उसको सब मिल जाता,
नवयुवक गुरू मिल जाते हैं,
शरद की पुनम पर,
जो भी कड़छा जाते हैं,
गुरूवर टेकचंद जी,
उनको गले से लगाते हैं।।
शरद की पूनम पर,
जो भी कड़छा जाते हैं,
गुरूवर टेकचंद जी,
उनको गले से लगाते हैं।।
सिंगर / अपलोड – योगेश प्रशांत (नागदा धार )
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