शिव का नाम जपो संसारी,
पतित पावनी पाप नाशीनी,
जिसने गंगा सिर पर धारी,
शिव का नाम जपों संसारी।।
सागर मंथन के प्रतिफल से,
घोर हलाहल निकला जल से,
शंख उठाकर पि गए शंकर,
नीलकंठ बन गये त्रिपुरारी,
शिव का नाम जपों संसारी।।
कामदेव ने बाण चलाए,
शंकर के मन काम समाए,
नेत्र तीसरा खोल ने शिव ने,
वहीं मदन की राख उछारी,
शिव का नाम जपों संसारी।।
जब गंगा को लाए भगीरथ,
कौन दिखाए उसे भूमि पथ,
जब कोई धारण कर ना पाया,
जटाजूट में शिव ने धारी,
शिव का नाम जपों संसारी।।
शिव का नाम जपो संसारी,
पतित पावनी पाप नाशीनी,
जिसने गंगा सिर पर धारी,
शिव का नाम जपों संसारी।।
स्वर – दिनेश जी भट्ट।