श्री जी की होने को जी चाहता है,
राधे राधे गाने को जी चाहता है,
श्रीं जी की होने को जी चाहता है।।
इसी आस पे राधा राधा पुकारे,
इसी आस पे राधा राधा पुकारे,
कभी एक नजर श्यामा मुझे भी निहारे,
कभी एक नजर श्यामा मुझे भी निहारे,
मस्ती में खोने को जी चाहता है,
श्रीं जी की होने को जी चाहता है।।
जीवन बिताया सारा जग को रिझा के,
जीवन बिताया सारा जग को रिझा के,
संतो की मस्ती देखि बरसाना आके,
संतो की मस्ती देखि बरसाना आके,
उसी रज में सोने को जी चाहता है,
श्रीं जी की होने को जी चाहता है।।
जिनकी गरूरी में संत खेलते है,
जिनकी गरूरी में संत खेलते है,
आनंद में रहते हुए कष्ट झेलते है,
आनंद में रहते हुए कष्ट झेलते है,
मेरा उस खिलोने को जी चाहता है,
श्रीं जी की होने को जी चाहता है।।
श्री जी की होने को जी चाहता है,
राधे राधे गाने को जी चाहता है,
श्रीं जी की होने को जी चाहता है।।
स्वर – माधवी जी शर्मा।