श्री कृष्ण स्तुति पितामह भीष्म द्वारा रचित,
— भीष्म उवाच —
इति मतिरुपकल्पिता वितृष्णा भगवति सात्वतपुंगवे विभूम्नि।
स्वसुखमुपगते क्वचिद्विहर्तुं प्रकृतिमुपेयुषि यद्भवप्रवाह:।।1।।
त्रिभुवनकमनं तमालवर्णं रविकरगौरवराम्बरं दधाने।
वपुरलककुलावृताननाब्जं विजयसखे रतिरस्तु मेSनवद्या।।2।।
युधि तुरगरजोविधूम्रविष्वक्-कचलुलितश्रमवार्यलड्कृतास्ये।
मम निशितशरैर्विभिद्यमान-त्वचि विलसत्कवचेSस्तु कृष्ण आत्मा।।3।।
सपदि सखिवचो निशम्य मध्ये निजपरयोर्बलयो रथं निवेश्य।
स्थितवति परसैनिकायुरक्ष्णा हृतवति पार्थसखे रतिर्ममास्तु।।4।।
व्यवहितपृतनामुखं निरीक्ष्य स्वजनवधाद्विमुखस्य दोषबुद्ध्या।
कुमतिमहरदात्मविद्यया य-श्चरणरति: परमस्य तस्य मेSस्तु।।5।।
स्वनिगममपहाय मत्प्रतिज्ञा – मृतमधिकर्तुमवप्लुतो रथस्थ:।
धृतरथचरणोSभ्ययाच्चलद्गु – र्हरिरिव हन्तुमिभं गतोत्तरीय:।।6।।
शितविशिखहतो विशीर्णदंश: क्षतजपरिप्लुत आततायिनो मे।
प्रसभमभिससार मद्वधार्थं स भवतु मे भगवान् गतिर्मुकुन्द:।।7।।
विजयरथकुटुम्ब आत्ततोत्रे धृतहयरश्मिनि तच्छ्रियेक्षणिये।
भगवति रतिरस्तु मे मुमूर्षो – र्यमिह निरीक्ष्य हता गता: सरूपम्।।8।।
ललितगतिविलासवल्गुहास – प्रणयनिरीक्षणकल्पितोरुमाना:।
कृतमनुकृतवत्य उन्मदान्धा: प्रकृतिमगन्किल स्य गोपवध्व:।।9।।
मुनिगणनृपवर्यसड्कुलेSन्त: – सदसि युधिष्ठिरराजसूय एषाम्।
अर्हणमुपपेद ईक्षणीयो मम दृ्शिगोचर एष आविरात्मा।।10।।
तमिममहमजं शरीरभाजां हृदि हृदि धिष्ठितमात्मकल्पितानाम्।
प्रतिदृशमिव नैकधार्कमेकं समधिगतोSस्मि विधूतभेदमोह:।।11।।
।।इति श्रीमद्भागवते महापुराणे प्रथमस्कन्दे नवमेेSध्याये भीष्मकृता भगवत्स्तुति: सम्पूर्णा।।
श्री कृष्ण स्तुति,
प्रेषक – मालचन्द जी शर्मा।
+919166267551
बहुत सुंदर
मुझे कंठस्थ याद करना है
कृपा करके मुझे हिंदी अनुवाद प्रदान करें
मेरे लिए यह मेल करें
करतज्ञ
ओमप्रकाश अग्रवाल
9829043963
ओमप्रकाश जी आपको अगर हिंदी में भावार्थ जानना है तो कृपा करके अपनी ईमेल आई डी
मेरी इस ईमेल पर भेज सकते हैं।
Email id: [email protected]
धन्यवाद।
गुरु जी के चरणों में अनंता अनंत कोटि दंडवत प्रणाम…..?
Guru ji Dandavat pranam.
Aap ne bahut hi sundar Gaya hai, Aap ke aavaj me aur bhi suiti hai kya .Jai sa ki pralad dhurv Narayan kavach Kunti .Aap send kar sak te hai kya
Pranam..