श्रीयादे का खेल निराला,
दोहा – आदु शक्ति श्रीयादे,
महिमा अपरम्पार महान,
ब्रह्मा-विष्णु-महेश भी,
है तेरे से अज्ञान।
श्रीयादे का खेल निराला,
पुग सके ना वांने कोई,
ऐसा करती छाला।।
थारा ओडर में ब्रह्मा विष्णु,
शंकर जग रखवाला,
करता हरता पालन करता,
दुनिया रचावण वाला।।
तपता नहीं है समन्दर सारा,
बिना सूरज उजाला,
उड़कर आवे बणके बादलों,
बहता नदी और नाला।।
बिन पानी का कैसा जानवर,
जीवत रहने वाला,
धान धन्देरियो जंगल टेरियो,
ऐसी कुदरत माया।।
समंदर ऊपर धरती घुमे,
होवे दिन और राता,
सूरज उजाला एक जगा ही,
अखण्ड किरण दरसाता।।
किशना जी की वाणी सुनकर,
ऐसा अचरज आया,
भरी नींद में सुतो ‘रतन’,
सतगुरु आन जगाया।।
श्री यादे का खेल निराला,
पुग सके ना वांने कोई,
ऐसा करती छाला।।
गायक – पंडित रतनलाल प्रजापति।
सहयोगी – श्री प्रजापति मण्डल चौगांवडी़।