श्याम का खजाना लूट रहा रे,
लूट रहा लूट रहा लूट रहा रे,
श्याम का खजाना लुट रहा रे,
लूट रहा, लूट रहा, लूट रहा रे,
श्याम का खजाना लुट रहा रे।।
लूट सके तो लूट ले बन्दे,
काहे देरी करता है,
ऐसा मौका फिर ना मिलेगा,
सबकी झोली भरता है,
इसकी शरण में आकर के,
इसकी शरण में आकर के,
जो कुछ भी माँगा मिल गया रे,
लूट रहा, लूट रहा, लूट रहा रे,
श्याम का खजाना लुट रहा रे।।
हाथों हाथ मिलेगा परचा,
ये दरबार निराला है,
घर घर पूजा हो कलयुग में,
भक्तो का रखवाला है,
जिसने भी इनका नाम लिया,
जिसने भी इनका नाम लिया,
किस्मत का ताला खुल गया रे,
लूट रहा, लूट रहा, लूट रहा रे,
श्याम का खजाना लुट रहा रे।।
इसके जैसा इस दुनिया में,
कोई भी दरबार नहीं,
ऐसा दयालु ‘बनवारी’ ये,
करता कभी इंकार नहीं,
कौन है ऐसा दुनिया में,
कौन है ऐसा दुनिया में,
जिसको बाबा नट गया रे,
लूट रहा, लूट रहा, लूट रहा रे,
श्याम का खजाना लुट रहा रे।।
श्याम का खजाना लूट रहा रे,
लूट रहा लूट रहा लूट रहा रे,
श्याम का खजाना लुट रहा रे,
लूट रहा, लूट रहा, लूट रहा रे,
श्याम का खजाना लुट रहा रे।।
स्वर – मनीष तिवारी।
प्रेषक – अविनाश मौर्य।