सोहंग शिखर में जाय,
मिले निज मेवा,
जीवित मोक्ष मिल जाय,
करम ने तजणा है ओ जी।।
अके कवल के माई,
अनगढ़ देवा,
वहां होता निज प्रकाश,
अखण्ड ज्योति जलती है ओ जी।।
दस दरवाजा बाद,
ढोल गुंजेलां,
वहां वाजें मदरगं ताल,
करम तो ऐसा हैं ओ जी।।
लिगं भंग के बीच,
राम जी मेरा,
पण नुगरा मानें नाय,
कर्म नीच करता है ओ जी।।
मनक जनम की मोज,
फेर नहीं आवे,
गुण गावें गोरख नाथ,
गुरासा सेवा है ओ जी।।
सोहंग शिखर में जाय,
मिले निज मेवा,
जीवित मोक्ष मिल जाय,
करम ने तजणा है ओ जी।।
गायक – जगदीश चन्द्र जटिया।
मोबाइल – 9950647154
प्रेषक – श्री धर्मराज बावजी स्टुडियो।
मावली उदयपुर राजस्थान।