सुख भी मुझे प्यारे है,
दुःख भी मुझे प्यारे है,
छोड़ू मैं किसे भगवन,
दोनो ही तुम्हारे है,
सुख भी मुझे प्यारे हैं,
दुःख भी मुझे प्यारे हैं।।
सुख दुःख ही तो दुनिया की,
गाड़ी को चलाते है,
सुख दुःख ही तो हम सबको,
इन्सान बनाते है,
संसार की नदीयों के,
दोनो ही किनारे है,
छोड़ू मैं किसे भगवन,
दोनो ही तुम्हारे है,
सुख भी मुझे प्यारे हैं,
दुःख भी मुझे प्यारे हैं।।
दुःख चाहे ना कोई भी,
सब सुख को तरसते है,
दुःख में सब रोते है,
सुख में सब हसते है,
सुख मिलते है जिसमे,
दुःख भी तो सहारे है,
छोड़ू मैं किसे भगवन,
दोनो ही तुम्हारे है,
सुख भी मुझे प्यारे हैं,
दुःख भी मुझे प्यारे हैं।।
मैं कैसे कहूँ मुझको,
ये दे दे या वो दे दे,
जो भी तेरी मर्जी हो,
मर्जी से वो दे दे,
मैंने तो तेरे आगे,
ये हाथ पसारे है,
छोड़ू मैं किसे भगवन,
दोनो ही तुम्हारे है,
सुख भी मुझे प्यारे हैं,
दुःख भी मुझे प्यारे हैं।।
सुख भी मुझे प्यारे है,
दुःख भी मुझे प्यारे है,
छोड़ू मैं किसे भगवन,
दोनो ही तुम्हारे है,
सुख भी मुझे प्यारे हैं,
दुःख भी मुझे प्यारे हैं।।
स्वर – व्यास जी मौर्य
बहुत सुंदर भजन