तज दिना प्राण,
काया कैसे रोई,
काया है निर्मोई।।
मैं जाण्यो काया सगं चलेगी,
इण तो काया ने मलमल धोई रे,
तज दिना प्राण,
काया कैसे रोईं,
काया है निर्मोई।।
तज दिना मन्दिर महल मालिया,
गाय भैंस घर घोङी रे,
घर कि नार बिलखती छोङी,
छोङ चल्या वे सारस कि सी जोङी रे,
तज दिना प्राण,
काया कैसे रोईं,
काया है निर्मोई।।
चार जणा मिल गजी बणाई,
चढ्या काठ की घोङी रे,
जाय जंगल में डेरा दिना,
फूंक दिया ज्यों फागुन कि होली रे,
तज दिना प्राण,
काया कैसे रोईं,
काया है निर्मोई।।
घर कि त्रीया यूँ उठ बोली,
बिछङ गई मारी जोङी रे,
भवानी नाथ बैरागी बोल्या,
जिन जोङी दाता पल माही तोङी रे,
तज दिना प्राण,
काया कैसे रोईं,
काया है निर्मोई।।
तज दिना प्राण,
काया कैसे रोई,
काया है निर्मोई।।
प्रेषक – रामानन्द प्रजापत जूसरी
9982292201