तरुण वीर देश के मूर्त वीर देश के,
जाग जाग जाग रे मातृ भू पुकारती,
तरुण विर देश के मूर्त वीर देश के।।
शत्रु अपने शीश पर आज चढ के बोलता,
शक्ति के घमण्ड मे देश मान तोलता,
पार्थ की समाधि को शम्भु के निवास को,
देख आँख खोल तू अर्गला टटोलता,
अस्थि दे कि रक्त तू,
वज्र दे कि शक्ति तू,
कीर्ति है खडी हुई आरती उतारती,
मातृ भू पुकारती,
तरुण विर देश के मूर्त विर देश के।।
आज नेत्र तीसरा रुद्र देव का खुले,
ताण्डव के तान पर काँप व्योम भू डुले,
मानसर पे जो उठी बाहु शीघ्र ध्वस्त हो,
बाहु-बाहु वीर की स्वाभिमान से खिले,
जाग शंख फूंक रे,
शूर यों न चूक रे,
मातृभूमि आज फिर है तुझे निहारती,
मातृ भू पुकारती,
तरुण विर देश के मूर्त विर देश के।।
आज हाथ रिक्त क्यों जन-जन विक्षिप्त क्यों,
शस्त्र हाथ मे लिये करके तिरछी आज भौं,
देश-लाज के लिए रण के साज के लिए,
समय आज आ गया तू खडा है मौन क्यों,
करो सिंह गर्जना,
शत्रु से है निबटना,
जय निनाद बोल रे है अजेय भारती,
मातृ भू पुकारती,
तरुण विर देश के मूर्त विर देश के।।
तरुण विर देश के मूर्त विर देश के,
जाग जाग जाग रे मातृ भू पुकारती,
जाग जाग जाग रे मातृ भू पुकारती,
तरुण विर देश के मूर्त विर देश के।।
यह देशभक्ति गीत,
सागर भारतीय जी,
Ph. 9812130775 द्वारा,
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अद्भुत , बहुत खूब । चिंगारी लगा दी सीने में। जाले झटक दे दिमाग के।