तेरी हीरा जैसी स्वांसा,
बातों में बीती जाए रे,
मन राम कृष्ण बोल रे,
मन राम कृष्ण बोल।।
गंगा यमुना खूब नहाया,
गया न मन का मैल,
घर-धंधों में लगा हुआ है,
ज्यों कोल्हू का बैल,
तेरे जीने की अभिलाषा,
बातों में बीती जाए रे,
मन राम कृष्ण बोल रे,
मन राम कृष्ण बोल।।
किया न पौरुष आकर जग में,
दिया न कुछ भी दान,
तेरा मेरा करते करते,
निकल गया यह प्राण,
जैसे पानी बीच बताशा,
बातों में बीती जाए रे,
मन राम कृष्ण बोल रे,
मन राम कृष्ण बोल।।
पाप गठरिया सिर पर लादे,
रहा भटकता रोज,
प्रेम सहित राधा माधव का,
किया न कुछ भी खोज,
झूठा करता रहा तमाशा,
बातों में बीती जाए रे,
मन राम कृष्ण बोल रे,
मन राम कृष्ण बोल।।
नस-नस में प्रति रोम-रोम में,
राम बसा है जान,
प्रकृत ‘बिन्दु’ के कण-कण में,
उसको तू पहचान,
उससे मिलने की अभिलाषा,
बातों में बीती जाए रे,
मन राम कृष्ण बोल रे,
मन राम कृष्ण बोल।।
तेरी हीरा जैसी स्वांसा,
बातों में बीती जाए रे,
मन राम कृष्ण बोल रे,
मन राम कृष्ण बोल।।
स्वर – स्वामी रामकमल दास वेदांती जी।
रचना – बिंदु जी महाराज।
प्रेषक – अनिल उरमलिया जी।