झुमें है गगन धरती ये पवन,
झूमे मेरा मन दर पे तेरे,
पहाड़ो में बना मंदिर ये तेरा,
ओ पार्श्व भैरव दादा मेरे,
ओ मेवानगर के महाराजा,
कोई तुमसा जग में और नहीं,
तेरी कृपा का कोई छोर नही,
जब सर पे है मेरे हाथ तेरा,
तो क्यो जाँऊ में ओर कही,
तेरी कृपा का कोई छोर नही।।
डाला है खुशियो ने डेरा,
आया है जीवन मे सवेरा,
कर दिए है रोशन मेरे रास्ते,
कोई गम न कोई फिकर है,
तेरी मुझपे जो ये नजर है,
सब कुछ लूटाऊँ तेरे वास्ते,
तू ही तो है संसार मेरा,
बस तू ही है आधार मेरा,
हर काम हुआ मेरा दादा,
पूरा हुआ तेरा वादा,
कैसे करूँ दादा तेरा शुक्रिया,
साया बनकर जो संग चले,
ऐसा साथी कोई और नही,
तेरी कृपा का कोईं छोर नही,
जब सर पे है मेरे हाथ तेरा,
तो क्यो जाँऊ मैं और कही,
तेरी कृपा का कोईं छोर नही।।
तन में पारस मन में पारस,
देखु जिधर भी उधर है पारस,
भा गया वो वामा का लाला,
कलयुग के है जो अवतारी,
भेरूजी है समकित धारी,
भेरू देव डमरू वाला,
‘दिलबर’ करले ऐसी युक्ति,
मिल जाये मुझे इनकी भक्ति,
भक्ति करते करते पाऊँ मुक्ति,
सुख वैभव से भरदे झोली,
दातार ऐसा कोई ओर नही,
तेरी कृपा का कोईं छोर नही,
जब सर पे है मेरे हाथ तेरा,
तो क्यो जाँऊ मैं और कही,
तेरी कृपा का कोईं छोर नही।।
झुमें है गगन धरती ये पवन,
झूमे मेरा मन दर पे तेरे,
पहाड़ो में बना मंदिर ये तेरा,
ओ पार्श्व भैरव दादा मेरे,
ओ मेवानगर के महाराजा,
कोई तुमसा जग में और नहीं,
तेरी कृपा का कोई छोर नही,
जब सर पे है मेरे हाथ तेरा,
तो क्यो जाँऊ में ओर कही,
तेरी कृपा का कोई छोर नही।।
गायक – वैभव बाघमार बालोतरा।
रचनाकार – दिलीप सिंह सिसोदिया ‘दिलबर’।
नागदा जक्शन म.प्र. 9907023365