ना जाने तुम कब बोलोगे,
मैं तो गया हूँ हार,
तेरी मूर्ति नहीं बोलती,
बुलाया कई बार,
बुलाया कई बार,
श्याम बुलाया लख बार,
तेरी मूर्ति नही बोलती,
बुलाया कई बार।।
जबसे होश संभाला देखि,
है तस्वीर तुम्हारी,
घर वालो ने बतलाया,
तेरी महिमा है बड़ी निराली,
या तो निकल आओ मूर्ति से,
या कर दो इनकार,
तेरी मूर्ति नही बोलती,
बुलाया कई बार।।
मूर्ति में ही तू क्यों रहता,
घर वालो से पूछा,
मेरी बात का उत्तर देना,
नही किसी को सुझा,
कैसा है सरकार तू मेरा,
कैसा तेरा दरबार,
तेरी मूर्ति नही बोलती,
बुलाया कई बार।।
जब मेरे बच्चे आकर के,
मुझसे ये पूछेंगे,
क्या जवाब दूंगा मुझपे,
सारे के सारे हसेंगे,
क्या तस्वीर लिए बैठे हो,
ये सब है बेकार,
तेरी मूर्ति नही बोलती,
बुलाया कई बार।।
साधारण ये मूर्ति नहीं है,
कहे ‘पवन’ बतला दो,
आज भरे दरबार कन्हैया,
ये चमत्कार दिखला दो,
मूर्ति से बाहर आ जाओ,
कम से कम एक बार,
तेरी मूर्ति नही बोलती,
बुलाया कई बार।।
ना जाने तुम कब बोलोगे,
मैं तो गया हूँ हार,
तेरी मूर्ति नहीं बोलती,
बुलाया कई बार,
बुलाया कई बार,
श्याम बुलाया लख बार,
तेरी मूर्ति नही बोलती,
बुलाया कई बार।।
स्वर – सौरभ मधुकर।