तेरी पूजा कलयुग में,
घर घर होगी शीश के दानी,
गूंज रही तीनो लोको में,
आज भी कृष्ण की वाणी,
तेरी पुजा कलयुग में,
घर घर होगी शीश के दानी।।
जो इस जग में सब कुछ हारा,
उसका बनेगा तू ही सहारा,
तेरी किरपा जिस पर भी होगी,
बदलेगी ज़िंदगानी,
तेरी पुजा कलयुग में,
घर घर होगी शीश के दानी।।
जो भी भरोसा तुझपे करेगा,
उसकी तो चिंता तू ही करेगा,
पार वो नैया जिसकी तूने,
डोर हाथ में थामी,
तेरी पुजा कलयुग में,
घर घर होगी शीश के दानी।।
एहसान तेरे कैसे भुलाऊँ,
कर्ज है इतने कैसे चुकाऊँ,
‘अमन बागड़ा’ यूँ ही सुनाये,
सबको तेरी कहानी,
तेरी पुजा कलयुग में,
घर घर होगी शीश के दानी।।
तेरी पूजा कलयुग में,
घर घर होगी शीश के दानी,
गूंज रही तीनो लोको में,
आज भी कृष्ण की वाणी,
तेरी पुजा कलयुग में,
घर घर होगी शीश के दानी।।
स्वर – मुकेश बागड़ा जी।