तेरो लाल चुरावे माखन,
मैया से बोली ग्वालन,
छीका पे चढ़ के,
मेरी मटकी फोड़ दई,
अरे कछु खायो कछु बाँट दयो,
सारो माखन और दही री मैया,
तेरो लाल चुरावें माखन,
मैया से बोली ग्वालन।।
तर्ज – तेरे कारण मेरे साजन।
तेरो यो कान्हा मैया,
ऐसो है चोर निराला,
मौका पड़ते ही सारा,
माखन ये चट कर डाला,
परेशान मैं हुई मेरी मटकी फोड़ दई,
अरे कछु खायो कछु बाँट दयो,
सारो माखन और दही री मैया,
तेरो लाल चुरावें माखन,
मैया से बोली ग्वालन।।
गुस्से में मैया बोली,
मुझको बतलाओ लाला,
बोलो क्या झूठ कहे है,
सारी ये ब्रज की बाला,
बात है ये क्या सही,
क्या मटकी फोड़ दई,
अरे कछु खायो कछु बाँट दयो,
सारो माखन और दही री मैया,
तेरो लाल चुरावें माखन,
मैया से बोली ग्वालन।।
मैया मैं सुबह सवेरे,
जाता हूँ गाय चराने,
आता मैं वहां से कैसे,
इसका दही माखन खाने,
ना इसके घर गयो,
ना मटकी फोड़ दई,
ना खायो ना बाट्यो है,
मैने माखन और दही,
मैने नही खायो माखन,
मैया से बोले मोहन।।
फिर बोले बांके बिहारी,
तू इनकी चाल ना जाने,
मुझसे मिलने को आती,
करके नित नये बहाने,
आशीर्वाद ले गयी,
शिकायत भी कर गयी,
तुझको माँ ना पता चला,
ये दर्शन भी कर गयी री मैया,
मैने नही खायो माखन
मैया से बोले मोहन।।
तेरो लाल चुरावे माखन,
मैया से बोली ग्वालन,
छीका पे चढ़ के,
मेरी मटकी फोड़ दई,
अरे कछु खायो कछु बाँट दयो,
सारो माखन और दही री मैया,
तेरो लाल चुरावें माखन,
मैया से बोली ग्वालन।।
स्वर – प्रदीप अग्रवाल जी।
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