थाम लो मैं बिखर जाऊंगा,
मैं बिखर के किधर जाऊंगा।।
मुझको कोई शिकायत नही,
तेरे बिन मुझको राहत नही,
इश्क़ की हद गुजर जाऊंगा,
मैं बिखर के किधर जाऊंगा,
थामलों मैं बिखर जाऊंगा,
मैं बिखर के किधर जाऊंगा।।
लागी तुमको पाने की लगन,
रहूं हर पल तुम्ही में मगन,
तुम जहाँ हो उधर जाऊंगा,
मैं बिखर के किधर जाऊंगा,
थामलों मैं बिखर जाऊंगा,
मैं बिखर के किधर जाऊंगा।।
तुम हो ‘चित्र विचित्र’ के सजन,
सूना सूना है तुम बिन जीवन,
तुमको पाके संवर जाऊंगा,
मैं बिखर के किधर जाऊंगा,
थामलों मैं बिखर जाऊंगा,
मैं बिखर के किधर जाऊंगा।।
मुझको ऐसे ना यूँ छोड़िए,
मुख अपना ना यूँ मोड़िए,
ना मिले तो मैं मर जाऊंगा,
मैं बिखर के किधर जाऊंगा,
थामलों मैं बिखर जाऊंगा,
मैं बिखर के किधर जाऊंगा।।
थाम लो मैं बिखर जाऊंगा,
मैं बिखर के किधर जाऊंगा।।
स्वर – श्री चित्र विचित्र महाराज जी।