थारो ऊंचो ऊंचो मंदिरयौ,
म्हारा डैरा रैन बसैरा में,
थारी जगमग मण्डफिया नगरी,
म्हारी कटती रात अंधैरा म।।
थारौ खेल अजूबौ सांवरा,
काम अजूबा कर देवें,
मांग मांग कै खावै ज्यांनै,
लखदातार कर दैवै,
म्हारौडा दूख दर्द देखले,
मंनै रंखलै थारा पहरा में,
थारी झगमग मण्डफिया नंगरी,
म्हारी कटती रात अंधैरा म।।
थारा नांम सूं सिस्टम हालै स,
म्हारो काम जरां सौ कर दीज्यौ,
म्हारी टूटी फूटी टपरी को,
छोटो सो महल बंणा दीज्यौ,
थांनै सूमिरतौ सौऊं रात म,
म्हारी खूलती आंख सवैरा में,
थारी झगमग मण्डफिया नंगरी,
म्हारी कटती रात अंधैरा म।।
थारे भरौसै आयो मण्डफिया,
म्हारो भोग हाथ सूं खालै न,
मैं रो रो दूखडौ बता रीयौ सांवरा,
मारी फाईल प मोहर लगादै न,
साग विदूर घर खायौ सांवरा,
कदै आजाज्यौ म्हारा डेरा म,
थारी झगमग मण्डफिया नंगरी,
म्हारी कटती रात अंधैरा म।।
थारो बढौ दरबार सांवरा,
मंनै शरंण जरां सी दै दीज्यौ,
थै पलक खौलल्यौ थौडा सा,
खत मस्तराम कौ पढ़ लीज्यौ,
पूरंण गुर्जर थारा गूंण गावै,
मैं गिरगौ गडडा गहरा म,
थारी झगमग मण्डफिया नंगरी,
म्हारी कटती रात अंधैरा म।।
थारो ऊंचो ऊंचो मंदिरयौ,
म्हारा डैरा रैन बसैरा में,
थारी जगमग मण्डफिया नगरी,
म्हारी कटती रात अंधैरा म।।
लेखक एवं गायक – पुरण गुर्जर सुखामण्ड।
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