थारी सावली सूरत रा माने,
दर्शन दे दीजो।
दोहा- प्रेम हरी को रूप है,
त्यों हरि प्रेम-सरूप,
एक होइ द्वै यों लसे,
ज्यों सूरज अरु धूप।
मुरलीधर की बांसुरी,
सुना रही है तान,
घर से निकली राधिका,
छोड़ साज- सामान।
थारी सावली सूरत रा माने,
दर्शन दे दीजो,
माधुरी मूरत रा माने,
दर्शन दे दीजो।।
ए मोर मुकुट पीताम्बर भारी,
झलक दिखा दीजो,
गल बैजंती माल हाथ मे,
मुरली ले लीजो,
थारी सांवली सूरत रा माने,
दर्शन दे दीजो।।
दिन दुखी तो मैं रहू,
मारी अर्जी सुण लीजो,
मर्जी हो तो आप सावरिया,
पार कर दीजो,
थारी सांवली सूरत रा माने,
दर्शन दे दीजो।।
वृन्दावन जावो तो मोहन,
साँची कह दीजो,
चंद्र सखी ने भव से पार कर दीजो,
थारी सांवली सूरत रा माने,
दर्शन दे दीजो।।
थारी सावली सूरत रा म्हाने,
दर्शन दे दीजो,
माधुरी मूरत रा माने,
दर्शन दे दीजो।।
गायक – मुकेश जी मेनारिया।
प्रेषक – कुलदीप मेनारिया,
9799294907