तू ले ले रे जो भी लेना है,
दुनिया का खुला बाजार है ये,
हर चीज मिलेगी तुझको यहाँ,
दो दिन को खुला बाजार है ये,
तू लेले रे जो भी लेना है।।
तर्ज – छू लेने दो नाजुक होठो को।
क्या लेना है क्या न लेना,
ये सोच समझ लेना प्यारे,
जो काम की हो वो ही लेना,
सिर पर न बढ़ाना भार रे,
तू लेले रे जो भी लेना है।।
चुन चुन कर ही लेना ऐ बन्दे,
सामान जगत से तू अपना,
अनमोल यहाँ की चीजे सभी,
न समझो कि सब बैकार है ये,
तू लेले रे जो भी लेना है।।
जीवन की सुहानी घड़ियो को,
जग मे तू कही न खो देना,
तू नाम गुरू का भजले अगर,
हो जाऐगा भव से पार रे,
तू लेले रे जो भी लेना है।।
तू ले ले रे जो भी लेना है,
दुनिया का खुला बाजार है ये,
हर चीज मिलेगी तुझको यहाँ,
दो दिन को खुला बाजार है ये,
तू लेले रे जो भी लेना है।।
– भजन लेखक एवं प्रेषक –
श्री शिवनारायण वर्मा,
मोबा.न.8818932923
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