तुझे गुरू कितना समझाए,
पर तेरी समझ न आए,
गुरू बार बार समझाऐ,
तेरी दो दिन की यह जिँदगी,
बातो में बीती जाऐ,
तुझे गुरू कितना समझाये,
पर तेरी समझ न आए।।
तर्ज – हाय हाय ये मजबूरी।
एक गुरु के सिवा जगत में,
कोई नही है अपना,
सँतो ने भी यही कहा है,
भजन बिना जग सपना,
जग सपना, जग सपना,
फिर क्यो जग में उलझ के बन्दे,
जीवन नरक बनाए,
तेरी दो दिन की यह जिँदगी,
बातो में बीती जाऐ,
तुझे गुरू कितना समझाये,
पर तेरी समझ न आए।।
सच्चा साथी सिवा गुरू के,
कोई नजर न आऐ,
मात पिता और कटुम्ब कबीँला,
सँग न तेरे जाए,
न जाए, न जाए,
क्यो न हरि को भज के बन्दे,
जीवन सफल बनाए,
तेरी दो दिन की यह जिँदगी,
बातो में बीती जाऐ,
तुझे गुरू कितना समझाये,
पर तेरी समझ न आए।।
ज्यो मकड़ी खुद जाल मे फँस कर,
अपने प्राण गँवाए,
ऐसे ही यह मानव जग मे,
अपना समय गँवाए,
गँवाए, हाँ गँवाए,
खुद ही उलझा है जग मे तू,
कोई नही उलझाऐ,
तेरी दो दिन की यह जिँदगी,
बातो में बीती जाऐ,
तुझे गुरू कितना समझाये,
पर तेरी समझ न आए।।
तुझे गुरू कितना समझाए,
पर तेरी समझ न आए,
गुरू बार बार समझाऐ,
तेरी दो दिन की यह जिँदगी,
बातो में बीती जाऐ,
तुझे गुरू कितना समझाये,
पर तेरी समझ न आए।।
– भजन लेखक एवं प्रेषक –
श्री शिवनारायण वर्मा,
मोबा.न.8818932923
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