तुम्हारी मेरी बात,
के जानेगो कोई,
है कितनी दफाई,
ये पलका भिगोई,
तुम्हारी मेरीं बात।।
तर्ज – गरीबों की सुनो।
जितना भी तेरी याद का आंसू,
मेरे खातिर दिवाली,
मैं एक बन का फुल हूँ माधव,
तू ही तो इसका माली,
दया से तुम्हारी ये,
फुला फला है,
कलाकार की ये निराली कला है,
मैं गुणगान गाऊं,
उतने ही कम है,
मेरी कुछ ना हस्ती,
तुम्हे ही शरम है,
अनजाने ही तेरी याद में,
कितनी रातां खोई।
तुम्हारी मेरीं बात,
के जानेगो कोई,
है कितनी दफाई,
ये पलका भिगोई,
तुम्हारी मेरीं बात।।
मुझमे कोई इल्म नहीं है,
तेरी प्रीत निभाने का,
अक्कल काम नहीं करती है,
देख के हाल जमाने का,
किधर से किधर,
आदमी जा रहा है,
नजर ना कोई,
रास्ता आ रहा है,
दिलाते तुम्हे याद,
मैं आ रहा हूँ,
इशारे पे तेरे,
चले जा रहा हूँ,
सर आंख्या पर हुकुम तिहारो,
तू करसी सो होई।
तुम्हारी मेरीं बात,
के जानेगो कोई,
है कितनी दफाई,
ये पलका भिगोई,
तुम्हारी मेरीं बात।।
तेरी मेरी प्रीत के माई,
तीजो कोई पंच नहीं,
तेरी पूजा अर्चन का है,
मन मंदिर सा मंच नहीं,
तेरा नाम लेकर,
जिए जा रहा हूँ,
ये बेजोड़ हाला,
पिए जा रहा हूँ,
मेरी जिन्दगी तेरी,
बांकी अदा है,
ये ‘शिव’ तो दीवाना,
तुम्ही पे फ़िदा है,
‘श्यामबहादुर’ उड़ता हँसा,
देख जगत क्यों रोई।
तुम्हारी मेरीं बात,
के जानेगो कोई,
है कितनी दफाई,
ये पलका भिगोई,
तुम्हारी मेरीं बात।।
तुम्हारी मेरी बात,
के जानेगो कोई,
है कितनी दफाई,
ये पलका भिगोई,
तुम्हारी मेरीं बात।।
गायक – विकास रुईया जी।
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