उड़ चल अपने देश पंछी रे,
दोहा – पंछी पड़ा परदेस में,
परदेस से भी उड़ गया,
उस देश को जाकर उड़ा वो प्यारा,
इस देश से मुंह मुड़ गया,
उस देश को जाकर उड़ा पंछी,
इस देश से मुंह मुड़ गया।
पंछी रे, पंछी रे,
उड़ चल अपने देश पंछी रे,
उड चल अपने देश ओ रे पंछी,
उड़ चल अपने देश,
जगत तो है परदेस,
पंछी रे उड़ चल अपने देश।।
जग परदेस से उड़ना है तुझको,
प्रभु चरणों में जुड़ना है तुझको,
आया तेरा सन्देश पंछी रे,
उड़ चल अपने देश,
जगत तो है परदेस,
पंछी रे उड़ चल अपने देश।।
ऐ पंछी तेरा देश पराया,
जाए वही जहाँ से तू आया,
आया तेरा आदेश पंछी रे,
उड़ चल अपने देश,
जगत तो है परदेस,
पंछी रे उड़ चल अपने देश।।
ऐ पंछी तेरी दर्द कहानी,
परदेस में तेरी कदर न जानी,
बन गया निठुर विदेश पंछी रे,
उड़ चल अपने देश,
जगत तो है परदेस,
पंछी रे उड़ चल अपने देश।।
पंछी रे, पंछी रे,
उड चल अपने देश पंछी रे,
उड चल अपने देश ओ रे पंछी,
उड़ चल अपने देश,
जगत तो है परदेस,
पंछी रे उड़ चल अपने देश।।
स्वर – बाबा श्री रसिका पागल जी।