उधो हमें ठग लीना,
हमे ठग लीना रे,
प्रीत लगाके दर्द दिया और,
छलिया ने छल किना,
उद्धो हमें ठग लीना।।
हम है गवारन गांवन की,
हम कछहु ना जाने,
ज्ञान ध्यान की बात करो तुम,
हम कछहु ना जाने
प्रेम की भाषा हमने पढ़ी और,
प्रेम को हम पहचाने,
हमें सिखावत हो उद्धो,
वा छलिया की हम जाने,
उद्धो हमें ठग लीना।।
जिस मन में घनश्याम बसे फिर,
और कहां क्या आवे,
जिन नैनन में श्याम छिपे फिर,
कैसे कोई सुहावे,
जिन साँसन में श्याम रमे है,
कैसे कोई वहां आवे,
जिसपे श्यामल रंग चढ़े फिर,
दूजो चढ़ ना पावे,
उद्धो हमें ठग लीना।।
हमे पढ़ावन आए हो,
पढ़के ज्ञान की पोथी,
प्रेम को भरम न जान सके,
बात करो तुम थोती,
ढाई अक्षर जो पढ़ लेते,
किसी की जरूरत न होती,
प्रेम ही सार सुनो हे उद्धो,
बिन प्रेम के पोथी थोथी,
उद्धो हमें ठग लीना।।
उधो हमें ठग लीना,
हमे ठग लीना रे,
प्रीत लगाके दर्द दिया और,
छलिया ने छल किना,
उद्धो हमें ठग लीना।।
प्रेषक – डॉ.सजन सोलंकी।
9111337188