वन वन डोले लक्ष्मण बोले,
मेरे भ्राता करो विचार रे,
अब कौन चुराई मात सिया।।
तर्ज – मन डोले मेरा तन डोले
रो रो कर यूँ राम पुकारे,
कहाँ गई जनक दुलारी,
मेघ विचारे तुम्ही कहो रे,
कहाँ किस्मत की मारी,
होले होले लक्ष्मण बोले,
अब कुछ तो करो विचार,
अब कौन चुराई मात सिया।।
वन वन डोले लक्ष्मण बोलें,
मेरे भ्राता करो विचार रे,
अब कौन चुराई मात सिया।।
हाय हाय चिल्लाते दोनों,
फेर अगाडी आए,
आगे चल के मारग में,
पड़े है जटायु पाए,
मुख राम राम और कटा चाम,
और खून की पड़े फुहार रे,
अब कौन चुराई मात सिया।।
वन वन डोले लक्ष्मण बोलें,
मेरे भ्राता करो विचार रे,
अब कौन चुराई मात सिया।।
बोले प्रभु जी सुनो जटायु,
किसने तुम्हे सताया,
वाणी सुनकर गिद्धराज की,
नैन नीर भर आया,
वो दशकंधर रथ के अंदर,
ले सिया को हुआ फरार रे,
अब कौन चुराई मात सिया।।
वन वन डोले लक्ष्मण बोले,
मेरे भ्राता करो विचार रे,
अब कौन चुराई मात सिया।।